गुरुवार, 26 सितंबर 2013

5 करोड़ की जमीन के लिए चौधरी ने छोड़ी थी कांग्रेस

भोपाल। जब भिंड विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने 5 करोड़ की जमीन के लिए कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था। इस बात का खुलासा इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा चौधरी को भूखंड आवंटन से हुआ है। जब चौधरी ने कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को भंड किया था तब ही कांग्रेसियों ने उन पर भाजपा के हाथों करोड़ों रुपए में बिक जाने के आरोप लगाए थे। अब चौधरी की कांग्रेस से बगावत का राज खुल गया है। भाजपा शासन ने इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा एबी रोड पर आवंटित और पांच साल पहले निरस्त हुए चौधरी राकेश सिंह के भूखंड को दोबारा उनके नाम पर आवंटित कर दिया है। 14 लाख 88 हजार रु. के इस भूखंड की कीमत आज 5 करोड़ रु. से ज्यादा हो चुकी है।
दरअसल, सांसद-विधायकों को प्राधिकरण की योजनाओं में भूखंड आरक्षित कर आवंटित किए जाते हैं। लिहाजा प्राधिकरण की एबी रोड से लगी पटेल मोटर के पास की योजना 114 भाग (2) में भूखंड क्रमांक 90 विधायक कोटे से सितंबर 2003 में राकेश सिंह चौधरी को आवंटित किया गया था। 372 वर्ग मीटर यानी 4000 स्क्वेयर फीट के इस भूखंड की दर उस वक्त मात्र 4000 रु. प्रति वर्ग मीटर यानी 400 रु. स्क्वेयर फीट की थी, इस हिसाब से यह भूखंड मात्र 14 लाख 88 हजार में आवंटित किया गया। मगर भिंड के ही तत्कालीन विधायक रहे नरेंद्र सिंह कुशवाह ने प्राधिकरण में शिकायत की कि चौधरी राकेश सिंह ने गलत शपथ पत्र देकर प्राधिकरण से भूखंड आवंटित करवाया है, जबकि वे पूर्व से ही विधायक कोटे के अंतर्गत एमआरएस इनक्लेव ग्वालियर में एचआईजी भवन अगस्त 2003 में और भोपाल में रीवेरा टाउनशिप में डुप्लेक्स भवन क्रमांक 47 आवंटित करवा चुके हैं। यानी चौधरी राकेशसिंह के पास दो-दो भवन विधायक कोटे के अंतर्गत पूर्व से ही आवंटित हंै और उन्होंने इंदौर विकास प्राधिकरण से भूखंड असत्य शपथ पत्र देकर आवंटित करवा लिया। जबकि आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय की गाइड लाइन स्पष्ट है कि सांसद-विधायक या आरक्षण कोटे के भूखंडों को वे ही व्यक्ति ले सकते हैं, जिनके अपने या पत्नी, अव्यस्क संतान के नाम पर पूरे मध्यप्रदेश में कहीं पर भी कोई भूखंड अथवा भवन न हो। इस आशय का शपथ पत्र प्राधिकरण द्वारा भी निर्धारित प्रारूप में मांगा जाता है, लिहाजा इस शिकायत के बाद इंदौर विकास प्राधिकरण के बोर्ड ने संकल्प क्रमांक 348, दिनांक 29.09.2008 के जरिए भूखंड के आवंटन की प्रक्रिया को रोकते हुए राकेश सिंह को कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया और उनसे जानकारी मांगी गई। मगर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पांच साल पहले प्राधिकरण ने नोटिस दिया, जिसका कोई जवाब चौधरी राकेश सिंह ने नहीं दिया? अलबत्ता, प्राधिकरण की ओर से इसके पश्चात 20 सितंबर 2008, 15 दिसंबर 2008, 24.12.2008, 9 जनवरी 2009, 23 जनवरी 2009 और 16 अगस्त 2010 को आधा दर्जन से अधिक कारण बताओ नोटिस भिजवाए जाते रहे। हालांकि, प्राधिकरण ने जो भूखंड चौधरी राकेश सिंह को आवंटित किया था, उसकी रजिस्ट्री उन्होंने 19 सितंबर 2006 को ही करवा ली थी, चूंकि शिकायत बाद में मिली, लिहाजा नोटिस देने और जवाब मांगने का सिलसिला चलता रहा। मगर पिछले दिनों चौधरी राकेश सिंह भाजपा में शामिल हो गए, लिहाजा उनसे संबंधित फाइल का मूवमेंट तेजी से भोपाल में भी शुरू हो गया। आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ताबड़तोड़ 22 जुलाई 2013 को इंदौर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को पत्र लिखा, जिसमें चौधरी राकेश सिंह के संबंध में की गई शिकायत और मार्गदर्शन का हवाला देते हुए विधि विभाग का अभिमत संलग्न किया गया। इतना ही नहीं चौधरी राकेश सिंह के लिए प्रमुख सचिव विधि द्वारा अनुमोदित अपर सचिव विधि राजीव आप्टे ने 4.7.2013 को अपनी राय दी और यह कहा कि चूंकि इंदौर विकास प्राधिकरण का भूखंड लेने व उसकी रजिस्ट्री करवाने तक चौधरी राकेशसिंह ने मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल से भूखंड का आवंटन नहीं करवाया था, सिर्फ आरक्षण ही हुआ था, लिहाजा वे इंदौर विकास प्राधिकरण को दिए गए शपथ पत्र की अधिरोपित शर्त को आवंटन दिनांक को पूरा करते थे। यानी इसका मतलब यह हुआ कि प्राधिकरण अपना कारण बताओ नोटिस निरस्त कर दे। लिहाजा, आज होने वाली बोर्ड बैठक में शासन का पत्र और विधि विभाग की राय को रखा गया है, जिससे पांच साल पहले और बाद में प्राधिकरण द्वारा दिए गए आधा दर्जन से अधिक कारण बताओ नोटिसों को नस्तीबद्ध किया जा सके। इतना ही नहीं, चौधरी राकेश सिंह ने पांच साल तक तो प्राधिकरण के आधा दर्जन नोटिसों का कोई जवाब नहीं दिया और जब भोपाल से उनका प्रकरण क्लीयर होने आया, तब उन्होंने पिछली 12 जून 2013 को प्राधिकरण में अपना 4 पेज का जवाब भिजवाया। इसमें उन्होंने यह तो स्वीकार किया कि ग्वालियर में सुपरडीलक्स एचआईजी आवास का पंजीयन उनके द्वारा करवाया गया, जो 17 नवंबर 2006 को निष्पादित हुआ। इसी तरह भोपाल के रिवेरा टाउनशिप में भवन का आधिपत्य उन्हें 17.10.2011 को मिला, जबकि इंदौर विकास प्राधिकरण का भूखंड वे 19 सितंबर 2006 को ही रजिस्ट्री के जरिए ले चुके थे। लिहाजा, उस दिनांक तक उनके पास मध्यप्रदेश की किसी भी नगर पालिक सीमा के अंतर्गत कोई आवासीय भूखंड या भवन नहीं था। भोपाल-ग्वालियर में पहले से हैं संपत्तियां चौधरी राकेश सिंह ने 12.6.2013 को इंदौर विकास प्राधिकरण को दिए गए नोटिसों के जवाब में स्वीकार किया है कि उनके पास दर्पण एनक्लेव, खातीपुर, ग्वालियर में एचआईजी सुपर डीलक्स आवास गृह हंै, जो उन्होंने स्ववित्त योजना के अंतर्गत विधायक अंश के आवेदन पर पंजीयन करवाया और हाउसिंग बोर्ड ने इसका पट्टा 17 नवंबर 2006 को निष्पादित किया। साथ ही भोपाल की रिवेरा टाउनशिप में भी सांसद और विधायकों को आवास देने की योजना के तहत उनके द्वारा आवंटन करवाया गया और 9.4.2007 को हाउसिंग बोर्ड ने उक्त आवासीय भूखंड की लीज डीड उनके पक्ष में निष्पादित की और भवन का आधिपत्य 15.10.2011 को सौंपा। चौधरी राकेश सिंह का तर्क यह है कि इंदौर विकास प्राधिकरण का भूखंड लेने और उसकी रजिस्ट्री करवाते वक्त उनके पास भोपाल-ग्वालियर के भूखंड या भवन नहीं थे, तब उन्होंने इनका सिर्फ आरक्षण करवाया था। बाहरी ने कबाड़े इंदौर में भूखंड प्रदेश में चूंकि सबसे महंगी जमीन इंदौर में ही है, लिहाजा प्रदेशभर के सांसद-विधायकों ने इंदौर विकास प्राधिकरण के करोड़ों-अरबों के 50 भूखंड आवंटित करवा लिए हैं। योजना 134, 140 और ,एबी रोड से लगी योजना 114 पार्ट (2) में बाहरी विधायकों, सांसदों ने बड़ी संख्या में भूखंड लिए हैं, जिनमें भीकनगांव, हाट पीपल्या, पेटलावद, सरदारपुर, अलीराजपुर, चाचौड़ा, खातेगांव, बैतूल, जोबट, शाहपुर, छिंदवाड़ा, उज्जैन, धार से लेकर तमाम गांवड़ों के जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं, क्योंकि उन्हें वहां पर तो सस्ता भूखंड मिलता, लिहाजा उन्होंने इंदौर में करोड़ों रुपए के भूखंड हासिल कर लिए। मात्र 20 रु. ज्यादा पर विधायक को भूखंड अभी थोड़े दिन पहले ही सोनकच्छ के भाजपा विधायक राजेंद्र वर्मा ने भी प्राधिकरण की चर्चित और महंगी योजना 140 में भूखंड कबाड़ लिया। मजे की बात यह है कि प्राधिकरण ने जहां सामान्य वर्ग के 4000 रु. मूल्य से अधिक के टेंडरों को निरस्त कर दिया और अनुमान लगाया कि इससे अधिर दर मिलेंगी, वहीं दूसरी तरफ उन्हीं टेंडरों के साथ आए सोनकच्छ विधायक राजेंद्र वर्मा के भूखंड को मात्र निर्धारित गाइड लाइन से 20 रु. अधिक के टेंडर पर मंजूर कर दिया। प्राधिकरण ने भूखंड क्रमांक 33 के लिए न्यूनतम दर 35251 रु. वर्गमीटर निर्धारित की थी और इससे 20 रु. ज्यादा 35271 स्क्वेयर फीट की दर वर्मा ने भरी, जिसे बोर्ड ने मंजूर भी कर भूखंड का आवंटन कर डाला। दिग्विजय ने मांगे दस्तावेज कांग्रेस से बगावत करने का इनाम प्राधिकरण के पांच करोड़ी भूखंड के रूप में मिलने के खुलासे पर कांग्रेस के महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस मामले के पूरे दस्तावेज मंगवाए हैं, ताकि कांग्रेस की ओर से हमला बोला जा सके।ं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी चुटकी ली कि अब यह राज खुल रहा है कि चौधरी राकेश सिंह को भाजपा ने इस तरह खरीदा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें