गुरुवार, 26 सितंबर 2013

5,000,000,000,000 की जमीन पर रसूखदारों का अवैध कब्जा

भोपाल। मध्य प्रदेश में रसूखदारों ने पचास खरब रुपए (5,000,000,000,000)की सरकारी जमीन पर अवैध रूप से हड़प ली है। कहीं-कही तो हजारों एकड़ जमीन एक ही व्यक्ति के कब्जे में है। इस बात का खुलासा सरकार की जांच में सामने आया है। सरकारी अधिकारियों की सांठ-गांठ से कबजाई गई इन जमीनों को रसूखदारों के कब्जे से निकालने के लिए सरकार हाथ-पांव तो मार रही है,लेकिन उसे सफलता मिलती नजर नहीं आ रही है। उल्लेखनीय है कि जब सरकार को इन भूमि घोटालों की खबर लगी तो,मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2009 में वरिष्ठ आइएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव (वर्तमान में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव)के नेतृत्व में समिति बनाकर प्रदेश में चल रहे भूमि घोटालों को उजागर करने का जिम्मा दिया था। समिति ने बड़े भूमि घोटालों की 14 रिपोर्टें राज्य सरकार को सौंपीं। इन रिपोर्टों से खुलासा हुआ कि भोपाल, ग्वालियर, धार, होशंगाबाद, हरदा और अशोक नगर जिलों में खरबों रुपए की जमीन कानून को धता बनाकर निजी हाथों में सौंप दी गई।
नदी और कब्रिस्तान पर पूर्व विधायक के परिवार का कब्जा प्रदेश के धार जिले के सरदारपुर कस्बे में मध्य प्रदेश के जमीन गोरखधंधे का सबसे दिलचस्प मामला सामने आया। मनोज श्रीवास्तव समिति की रिपोर्ट कहती है, यह अद्भुत प्रकरण है जिसमें एक नगर की लगभग संपूर्ण भूमि एक ही परिवार के हाथों आ गई। यह वह प्रकरण है जिसमें एक परिवार एक नदी (माही), कब्रिस्तान, श्मशान, डाक बंगला, जेलखाना, शासकीय कन्याशाला, विजय-स्तंभ, टीआइ बंगला, कलेक्टर कोठी सहित कई सार्वजनिक जमीन पर पुराने पट्टों के आधार पर हक जमाता है और कलेक्टर पट्टों की प्रामाणिकता पर संदेह करने की बजाए दावेदार को जमीन का अधित्यजन (दान) करने का मौका देता है और कुछ जगह अधित्यजन कराकर खुश होता है। असल में, 1995 में कलेक्टर के एक गलत आदेश के जरिए 1,471 बीघा जमीन नगरपालिका और प्रदेश शासन से लेकर निजी पक्षकार के हक में कर दी गई। बाद में एक दूसरे कलेक्टर ने यह आदेश गलत पाया और जमीन को सरकार के कब्जे में लाने के लिए राजस्व मंडल (रेवेन्यू बोर्ड) से मामले पर दोबारा गौर करने की इजाजत मांगी। मंडल ने जमीन को सरकार के कब्जे में लाने का आदेश खुद ही दे दिया, जो कि हाइकोर्ट से खारिज हो गया। कोर्ट ने छानबीन की इजाजत दी। रिपोर्ट बताती है कि तमाम कानूनी प्रक्रिया के बाद 5 जून, 2007 को कलेक्टर के आदेश के जरिए कुछ जमीन लेकर बाकी निजी पक्षकार को दे दी गई। मजे की बात यह है कि नदी, पहाड़ और कब्रिस्तान जैसी जमीन छोडऩे के लिए भी कलेक्टर ने निजी पक्षकार को पुचकारा। रिपोर्ट में कलेक्टर के आदेश को गैरकानूनी बताया गया पर कार्रवाई की सिफारिश किसी के खिलाफ न हुई। यह मामला सरदारपुर के प्रतिष्ठित शंकरलाल गर्ग परिवार से जुड़ा है। गर्ग 1952 में यहां के विधायक रहे। मामले की पैरवी कर रहे उनके पुत्र 78 वर्षीय लक्ष्मी नारायण कहते हैं, पालिका का दावा निराधार है। आजादी से पहले पालिका के दावे के खिलाफ ग्वालियर स्टेट कोर्ट में भी हम जीते थे। दो गांवों की जमीन बेचकर गायब भोपाल से सटे दो गांवों चांचेड़ और गनियारी में एस.के. भगत के नाम पर तहसीलदार ने करीब 450 एकड़ जमीन कर दी। यह भी न सोचा कि सीलिंग आदेश के बाद किसी के पास इतनी जमीन कैसे हो सकती है। मामला आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए लोगों की भारत में जमीन से जुड़ा है। भगत नाम के व्यक्ति ने दोनों गांवों में 1962 और 1963 में यह जमीन दिए जाने का दावा किया है। पर समिति के मुताबिक, कब्जे के कागजात 1994 में तैयार किए गए और उन्हें 1962/1963 की तारीखों में दिखाया गया। रिपोर्ट में मजेदार टिप्पणी है, राजस्व आज्ञापत्र पर कुछ मार्किंग्स जिस तरह के पेन से हैं, वे 1963 में चलन में भी नहीं आए थे। पूरे मामले में गैरकानूनी, धोखाधड़ी और शरारतपूर्ण कार्रवाई को देखते हुए इसमें म.प्र. भू राजस्व संहिता की धारा 115 के तहत कार्रवाई की जाए। पर भगत परिवार तो तकरीबन सारी जमीन बेच एक दशक पहले ही यहां से जा चुका है। भगत के पुराने मकान में रह रहे फूल सिंह बताते हैं, वे तो 10-12 साल पहले ही जमीन बेचकर जा चुके हैं। भेल की 200 एकड़ जमीन पर माफिया का कब्जा मध्य प्रदेश सरकार ने 27 नवंबर, 1957 को भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि. (बीएचईएल) को भोपाल 6,000 एकड़ से अधिक जमीन दी। इसमें से 200 एकड़ जमीन पर माफियाओं का कब्जा है। श्रीवास्तव समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, यह जमीन भेल को एक कंपनी के तौर पर दी गई। इसमें कोई औपचारिक ट्रांसफर डीड नहीं हुई। लिहाजा भेल प्रशासन या केंद्र सरकार को इस जमीन पर मालिकाना हक जताने का कोई अधिकार नहीं। अधिग्रहण के बाद से करीब 2,000 एकड़ जमीन भेल के पास फालतू पड़ी है। रिपोर्ट में 1998 के प्रदेश के राजस्व मंत्रालय के एक सर्कलर का हवाला दिया गया है। सर्कलर कहता है राज्य शासन ने फैसला किया है कि प्रदेश में लगे केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को दी गई जमीन में से जो जमीन उनके तय मकसद के लिए काम में नहीं ली जा रही, उसे फौरन वापस लिया जाए। इसी आधार पर भेल की खाली पड़ी 2,000 एकड़ जमीन वापस लेने की सिफारिश की गई। रिपोर्ट तो कहती है कि भेल अपनी ही जमीन की देखभाल नहीं कर पा रहा और अब तक 200 एकड़ जमीन पर भूमाफिया ने कब्जा जमा लिया है। इस 200 एकड़ का ज्यादातर हिस्सा अब रियल एस्टेट के लिहाज से खासा अहम हो गया है। भोपाल में बन रहे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सामने की भेल की जमीन पर भी अवैध कब्जा हो चुका है और वहां मकान बन रहे हैं। एम्स के यहां आने की वजह से जमीन की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। भेल के वरिष्ठ प्रबंधक (प्रचार और जनसंपर्क) विनोदानंद झा इस संस्था का पक्ष रखते हैं, भेल को जमीन दिए जाने के मामले में सारी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। हां, भेल की 150 एकड़ जमीन पर अवैध बस्तियां बनी हैं। इन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार से लगातार चि_ी-पत्री हो रही है। एम्स के पास हो रहे नए अवैध निर्माण पर भेल प्रशासन नजर रखता है और इसे समय-समय पर तोड़ा जाता है। ग्वालियर में 200 करोड़ की जमीन पर अवैध कब्जा ग्वालियर शहर में पूर्व ग्वालियर राजघराने द्वारा स्थापित ग्वालियर डेयरी लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के लिए 47 हेक्टेयर जमीन दे दी गई,जबकि कायदे से यह जमीन राज्य शासन के पास होनी चाहिए। इस मामले में निजी पक्षकार को 2008 में राजस्व मंडल के एक ऐसे आदेश के चलते जमीन हासिल हो गई, जिसमें 1991 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की अनदेखी कर दी गई थी। मौजूदा बाजार भाव पर इस जमीन की कीमत करीब 200 करोड़ रु. है। इस बारे में कंपनी के मालिक के.सी. जैन कहते हैं कि ग्वालियर डेयरी लिमिटेड को शहरी क्षेत्र में 1516.96 एकड़ जमीन पूर्व ग्वालियर रियासत की ओर से 4 जून, 1942 को 25 साल के पट्टे पर दी गई थी। तत्कालीन महाराज जीवाजीराव सिंधिया ने इस कंपनी को बनाया और उसमें उनके सरदार माधवराव फालके और सरदार देवराज कृष्ण जाधव (डी.के. जाधव) के अलावा रियासत के प्रभावशाली लोग कंपनी में शेयर होल्डर थे। 25 साल के पट्टे की मियाद खत्म होने के बाद अप्रैल, 1979 में अपर जिलाध्यक्ष के आदेश के जरिए जमीन सरकार ने वापस ले ली। इसके बाद कंपनी की जमीन का बड़ा हिस्सा सरकारी विभागों ने कब्जे में ले लिया। 20 मार्च, 2008 को राजस्व बोर्ड ने चौंकाने वाला आदेश देते हुए जमीन पर कंपनी का अधिकार मान लिया। बोर्ड के आदेश पर गंभीर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट साफ कहती है, राजस्व बोर्ड ने 1981 के हाइकोर्ट के जिस आदेश को आधार बनाया है, उस आदेश को 1991 में ही सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका था। दूसरे, बोर्ड में सुनवाई के दौरान शासन के वकील खड़े होकर पूरी तरह शासन के खिलाफ और आवेदक के पक्ष में बोल रहे हैं। ग्वालियर डेयरी को फायदा पहुंचाने के लिए पूरा प्रशासनिक पक्ष लामबंद था। सरकार को जो जमीन मिली भी है, वह कुछ इस तरह जैसे कि कंपनी उसे दान में दे रही हो। हालांकि इसमें एक खतरा है। कंपनी कल को चुनौती दे सकती है कि जब सरकार इस जमीन को कंपनी की नहीं मानती तो दान किस आधार पर करा रही है। जंगल की 7,987 एकड़ जमीन पर आश्रम हरदा जिले के टिमरनी के पास जंगल की 7987.80 एकड़ जमीन राधास्वामी सत्संग सभा के पास है। यहां राजाबरारी एस्टेट की इस जमीन पर विवाद है, जो पूरी की पूरी संरक्षित वन क्षेत्र में आती है। इस मामले में राधास्वामी सत्संग सभा का दावा है कि मध्य प्रदेश भूराजस्व अधिनियम के तहत उसके पास लीज के सभी अधिकार और सुविधाएं हैं। सभा के मुताबिक सरकार के साथ उसका मूल करारनामा 1953 में और फिर 1956 में पूरक करारनामा हुआ। सभा यहां राधास्वामी ट्रेनिंग, एम्पलायमेंट और आदिवासी उत्थान संस्थान भी चलाती है। रिपोर्ट के मुताबिक,लीज का 1953 और 1956 में पंजीयन होना था। हुआ नहीं। लीज 1953 और 1956 में स्टांपित ही नहीं थी। सभा को जिस तरह की लीज मिली थी उसके तहत, जमीन के गैरवानिकी मकसद से प्रयोग की इजाजत नहीं थी। रिपोर्ट कहती है कि ऐसे में वन भूमि घोषित होने के बाद लीज मान्य नहीं होगी। लीज रद्द की जाए। लेकिन सभा के सचिव गुरमीत सिंह कहते हैं, सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं। सभा के काम की तारीफ उच्च अधिकारी और कैबिनेट स्तर के मंत्री तक कर चुके हैं। मामला राजस्व बोर्ड में विचाराधीन है। वैसे भी राज्य सरकार का अधिकारी सरकार के शीर्ष स्तर के फैसले को चुनौती नहीं दे सकता। नजूल की जमीन की धड़ाधड़ रजिस्ट्रियां होशंगाबाद जिले के इटारसी शहर में ऐसे 114 मामलों का खुलासा हुआ है जहां 1985 से अक्तूबर, 2010 के बीच नजूल की जमीन रजिस्ट्री कर बेची गई। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, इटारसी शहर में नजूल शीट नंबर 6 और 3 के प्लॉट नंबर 3/1 रकबा 1,41,935 वर्ग फुट जमीन एच.ए. राजा और ए.ए. सैफी के नाम दर्ज है। राजा की मौत वर्षों पहले हो चुकी है लेकिन नजूल रिकॉर्ड में उनके वारिसों के नाम दर्ज नहीं हैं। हातिम अली के बेटे जमीन पर नाम चढ़ाए बगैर फर्जी तरीके से जमीन की रजिस्ट्री कर शासन की कीमती जमीन बगैर हस्तांतरण के बेच रहे हैं, जबकि पट्टा निरस्त हो चुका है। इटारसी में इस अवैध जमीन को खरीदने वालों में भोपाल के कुछ राजनीतिक परिवार शामिल हैं। नजूल प्रकरण पर वे कहते हैं, पूरे प्रदेश में नजूल की जमीन को अवैध तरीके से बेचने के मामले सामने आ रहे हैं। इसके लिए पूरे प्रदेश में व्यापक गाइडलाइन तैयार करनी होगी। जालसाज और अफसरों पर कार्रवाई नहीं प्रदेश में चल रहे जमीन के गोरखधंधे की परतें सामने आने के बाद भी सरकार दोषी अफसरों और जालसाजों पर कार्रवाई नहीं कर रही है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रते हैं कि समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद से 1,5000 एकड़ जमीन वापस ली जा चुकी है। सीहोर में हाल ही 5,000 एकड़ वापस ली। हालांकि प्रतिवादी अब कोर्ट में चला गया है। वह कहते हैं कि भेल की 2,000 एकड़ खाली पड़ी जमीन भी वापस करने की मांग मैंने खुद प्रधानमंत्री के सामने रखी है। फिर से केंद्र के सामने इसे उठाऊंगा।

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