गुरुवार, 26 सितंबर 2013

उम्र 65 पार, फिर भी कुर्सी से प्यार

भोपाल। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, पर इसकी बागडोर विश्व के सबसे बुजुर्ग नेताओं के हाथों में है। यही नहीं, हमारी जनसंख्या की उम्र घटी है और हमारे नेताओं की उम्र बढ़ रही है। देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश में भी ऐसे बुजुर्ग नेताओं की कमी नहीं हैं जिनकी उम्र बढऩे के साथ इनकी राजनीतिक हसरतें भी बढ़ रही हैं। प्रदेश में मतदाताओं और नेताओं के बीच बढ़ते जनरेशन गैप, उसके अंजाम और सुधार के सुझावों पर प्रस्तुत है पाक्षिक मालव समाचार की रिपोर्ट। मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में युवा मतदाताओं की अहम भूमिका रहने वाली है,क्योंकि कुल मतदाताओं में 35 फीसदी युवा हैं। लेकिन प्रदेश के चुनावी समर में बुजुर्ग नेता एक बार फिर युवाओं से विधानसभा टिकट पाने को कदमताल कर रहे हैं। न भाजपा के बुजुर्ग दावेदार पीछे हैं और न कांग्रेस के। युवाओं से आगे की पंक्ति में दोनों दलों के बुजुर्ग नेता हैं। इनमें से 5 दर्जन से ज्यादा वे नेता हैं जो वर्तमान में विधायक हैं और जिनकी उम्र 65 से 84 वर्ष के बीच है। यानी सरकार चाहे जिस पार्टी की बने, स्थितियां मौजूदा विधानसभा से अलग नहीं होंगी। क्योंकि दोनों ही दलों में दावेदारी करने वाले एक तिहाई कद्दावर बुजुर्ग नेता हैं, जिनके टिकट पार्टी चाहकर भी नहीं काट पाएगी।
मंत्रिमंडल की औसतन उम्र 60 वर्ष मौजूदा शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में 35 मंत्री शामिल हैं। मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं की औसतन उम्र लगभग 60 वर्ष है। इनमें से 8 मंत्री ऐसे हैं जिनकी उम्र 65 के पार पहुंच गई है। युवा नेताओं में इसे लेकर रोष भी है। हालांकि दोनों पार्टियां गाहे-बगाहे कहती रही हैं कि चुनाव में 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया जाएगा। लेकिन हर बार युवाओं को दरकिनार कर दिया जाता है। इस बार भी उम्रदराज नेताओं की सक्रियता और राजनीतिक पकड़ के कारण युवाओं को टिकट मिलना मुश्किल लग रहा है। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक अध्ययन के मुताबिक साल 2020 में देश की औसत उम्र 29 साल होगी। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की आबादी में 65 साल से ज्यादा के सिर्फ 5.5 फीसदी लोग हैं। लेकिन आबादी के आंकड़ों से ठीक उलट, भारत के कैबिनेट मंत्रियों की औसत उम्र 65 साल, मुख्यमंत्रियों की 62 साल और अलग-अलग राज्यों में तैनात राज्यपालों की औसत उम्र 74 साल है। साफ है, नौजवान देश की दिशा तय करने वाला नेतृत्व बूढ़ा होता जा रहा है। सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर आशीष नंदी का कहना है, 'सभी दलों के बुजुर्ग नेता, नए चेहरों को जगह देने के लिए तैयार नहीं हैं। नतीजतन, 70 पार के नेताओं का दबदबा कायम है। ऐसे हालात में युवाओं के उन सवालों को अहमियत नहीं मिल पाएगी, जो रोजगार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े हैं।Ó प्रो. नंदी की बात से इत्तेफाक रखने वालों की कमी नहीं। चार्टर्ड एकाउंटेंट अर्पित जैन कहते हैं, 'अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे देशों की तरह हमारे यहां भी यंग लीडर देश की कमान क्यों नहीं संभालते? मैं तो चाहता हूं कि देश में ऐसे युवा चेहरे नेतृत्व संभालें, जो यंगिस्तान से जुड़े मसलों को हल करने की पहल का माद्दा रखते हों।Ó राजनीतिक दल मानने को तैयार नहीं दरअसल, बहुमत की ताकत के बूते नेतृत्व कर रहे बुजुर्गवार नेता राजनीति की चौसर के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। राजनीतिक पटल पर इनके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोल पाता, जो स्वाभाविक भी है। मध्य प्रदेश की मंदसौर लोकसभा सीट से कांग्रेस की 40 वर्षीय युवा सांसद मीनाक्षी नटराजन कहती हैं, 'देश के नौजवानों के सपने सिर्फ युवा नेतृत्व से ही पूरे नहीं हो सकते। अनुभव की अनदेखी नहीं की जा सकती।Ó कुछ इसी तरह की बात भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमरदीप मौर्य भी कहते हैं। उनके मुताबिक, 'जो लोग समाजसेवा के जरिए राजनीति में आते हैं, जमीनी स्तर पर काम करते हैं, संघर्ष करके आते हैं, उनकी उम्र हो जाती है।Ó यवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चौधरी भी नटराजन और मौर्य से अलग नहीं है। चौधरी कहते हैं, 'यह जरूरी तो नहीं है कि सिर्फ युवा ही देश हित के बारे में बेहतर तरीके से सोच सकते हैं। हम अपने बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं का लाभ लेते रहेंगे। हमारी पार्टी में युवाओं को भी सरकार और संगठन में पर्याप्त अवसर मिलते हैं।Ó जाहिर है, उम्रदराज नेताओं के अनुयायी या पार्टी के जूनियर उनकी प्रासंगिकता के मुद्दे पर अपने हाथ नहीं जलाना चाहते। तमाम राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सभी पार्टियां अपने बुजुर्ग नेताओं के स्थान पर नए और ज्यादा ऊर्जावान नेताओं को अहमियत नहीं दे पातीं। पूर्व मुख्यमंत्री और गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से रिकार्ड 9 बार जीत दर्ज करने वाले बाबूलाल गौर करीब 84 बरस के होने के बावजूद सियासत का मैदान छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे ही पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी किसी समारोह में जाकर ऊंघने लगते हैं, पर रिटायर नहीं होना चाहते। सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च के प्रेसिडेंट प्रताप भानू मेहता कहते हैं, 'इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि हमारे यहां तेजतर्रार नेताओं को पार्टी संगठन और सरकार में अहम पद मिलें। लेकिन, मैं अपने मौजूदा युवा नेताओं के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हूं। उनके पास देश के विभिन्न मसलों को लेकर विजन का अभाव ही दिखता है।Ó समाजशास्त्री और काउंसिल फॉर सोशल स्टडीज के फेलो मनोरंजन मोहंती कहते हैं, 'हमारे सियासी दलों के खाने के और दिखाने के दांत अलग होते हैं। ये सभी नौजवानों को आगे लाने का वादा तो करते हैं, पर अपने बेटे, बेटी, बहू वगैरह को ही युवा मानते हैं।Ó वयोवृद्ध होना कुशल नेतृत्व की शर्त नहीं है। फिर भी युवा नेतृत्व की एकतरफा वकालत बेमानी है। भारतीय राजनीति में तन से बुजुर्ग, लेकिन मन से जवान कई मिल जाएंगे, जिनके काम में उम्र कभी आड़े नहीं आई। भाजपा के उम्रदराज विधायक नाम विधानसभा सीट माखनलाल राठौर - शिवपुरी रामकृष्ण कुसमारिया- पथरिया जयंत मलैया-दमोह नागेन्द्र सिंह-गुढ़ सुंदर सिंह- जयसिंह नगर मोती कश्यप-बड़वारा भैयाराम पटेल-तेंदूखेड़ा राघवजी भाई-विदिशा कन्हैयालाल अग्रवाल-बामोरी ईश्वरदास रोहाणी-जबलपुर केंट गिरिजाशंकर शर्मा-होशंगाबाद सरताज सिंह-सिवनी मालवा बाबूलाल गौर-गोविंदपुरा रामदयाल अहिरवार-चंदला मानवेंद्र सिंह-महाराजपुर शांतिलाल धबाई-बडऩगर शिवनारायण जागीरदार-उज्जैन दक्षिण बृजमोहन धूत-खातेगांव रंजीत सिंह गुणवान-आष्टा चेतराम मानेकर-अमला जगन्नाथ सिंह-चितरंगी श्री रामचरित-देवसर नागेन्द्र सिंह-नागौद जुगुल किशोर बागरी-रैगांव कांग्रेस के उम्रदराज विधायक नाम विधानसभा सीट प्रभुदयाल गेहलोत-सैलाना महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा-जावरा मूल सिंह-राघोगढ़ मेर सिंह चौधरी-चौरई गंगाबाई उरैती-शहपुरा मध्य प्रदेश में 35 फीसदी मतदाता युवा मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में युवा मतदाताओं की अहम भूमिका रहने वाली है, चूंकि कुल मतदाताओं में 35 फीसदी युवा हैं। आधिकारिक तौर पर मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में युवा मतदाताओं की संख्या में तेजी से बढ़ी है। प्रदेश के कुल चार करोड़ 64 लाख 42 हजार 852 मतदाताओं में लगभग 35.06 प्रतिशत संख्या 18 से 29 साल के युवाओं की है। इनकी संख्या एक करोड़ 62 लाख से अधिक है। राज्य के मतदाताओं में 20 से 29 साल के बीच मतदाताओं की संख्या एक करोड़ 40 लाख 25 हजार 514 है। इनका प्रतिशत 30.20 है। वहीं 18-19 वर्ष के 22 लाख 59 हजार 243 मतदाता हैं। आयु के हिसाब से युवा मतदाताओं को देखें तो 18-19 वर्ष के मतदाताओं की सर्वाधिक संख्या एक लाख 10 हजार 707 धार जिले में है। इसी तरह शिवपुरी जिले में 87 हजार, बड़वानी जिले में 77 हजार, सागर जिले में 76 हजार, खरगौन जिले में 72 हजार , रीवा जिले में 63 हजार और छिन्दवाड़ा जिले में 63 हजार से अधिक मतदाता हैं। इसी तरह 20 से 29 आयु वर्ग के सबसे अधिक मतदाता इंदौर जिले में हैं। यहां इनकी संख्या 6 लाख 43 हजार है। इसी तरह जबलपुर में पांच लाख 24 हजार, भोपाल में पांच लाख 18 हजार, धार में पांच लाख 2 हजार, सागर में चार लाख 72 हजार, सतना में चार लाख 41 हजार, रीवा में चार लाख 27 हजार, छिन्दवाड़ा में चार लाख 25 हजार और मुरैना में चार लाख 21 हजार से अधिक मतदाता 20 से 29 वर्ष की आयु के हैं। भाजपा के लिए मुसीबत बनते रहे हैं उम्रदराज नेता संघ की पाठशाला में उम्र भर त्याग, तपस्या, बलिदान, समर्पण और राष्ट्रवाद के पाठ पढऩे वाले भाजपा के नेता आखिरकार उम्र के एक खास मुकाम पर पहुंचते ही इनसे ठीक उलटी मिसाल क्यों पेश करने लगते हैं? खुद को व्यक्ति पूजा से दूर, सिद्धांत आधारित संगठन बताने वाली इस पार्टी के अंदर कोई भी सत्ता परिवर्तन इसके नेता क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाते? लालकृष्ण आडवाणी के ताजा कदम के बाद अब तो यह सवाल भी उठने लगा है कि कहीं पार्टी संगठन के डीएनए में ही तो कोई गड़बड़ी नहीं। भाजपा में मदन लाल खुराना से लेकर सुंदर सिंह भंडारी, किशन लाल शर्मा, कल्याण सिंह, केशुभाई पटेल और येदियुरप्पा जैसे तमाम ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर पार्टी को खास ऊंचाई दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन, एक उम्र पर पहुंचने और सत्ता का स्वाद चखने के बाद इनको बदलते भी देर नहीं लगी और ये नेता खुद ही पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल बने। इसी तरह राज्यों में हर सत्ता परिवर्तन भाजपा के लिए बेहद कष्टप्रद साबित हुए हैं। कर्नाटक में पांच साल के कार्यकाल में भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बदले। मध्य प्रदेश में उमा भारती हों, उत्तराखंड में बीसी खंडूड़ी या रमेश पोखरियाल निशंक और उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह व रामप्रकाश गुप्त, हर बार नेतृत्व परिवर्तन ने भाजपा को चोट पहुंचाई है।

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